कोरबा, कटघोरा (चोटिया), 11 अगस्त 2025: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के कटघोरा वन मंडल के केंदई वन परिक्षेत्र के ग्राम चोटिया में हाथियों के बढ़ते उत्पात और मानव-हाथी संघर्ष को लेकर स्थिति गंभीर बनी हुई है। एक ओर जहां वन विभाग द्वारा स्थानीय लोगों को जागरूक करने के लिए चोटिया बाजार के बीचों-बीच नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया, वहीं दूसरी ओर टोल प्लाजा से मात्र 500 मीटर की दूरी पर एक दंतैल हाथी ने किसान के खेत में घुसकर धान की फसल को नुकसान पहुंचाया। इस घटना ने क्षेत्र में दहशत और चर्चा का माहौल बना दिया है।
नुक्कड़ नाटक के जरिए जागरूकता का प्रयास
कटघोरा वन मंडल के अंतर्गत चोटिया गांव में वन विभाग ने हाथियों से बचाव और मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए एक जनजागरूकता अभियान चलाया। इसके तहत गांव के बाजार में नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया, जिसमें आसपास के प्रभावित गांवों के सैकड़ों लोग शामिल हुए। नाटक के माध्यम से ग्रामीणों को बताया गया कि हाथियों के साथ छेड़छाड़, उनके करीब जाने या उन्हें उकसाने से बचना चाहिए। नाटक में यह भी समझाया गया कि हाथी जंगल और खेतों में भोजन की तलाश में आते हैं, और उनकी उपस्थिति में शांत रहकर सुरक्षित दूरी बनाए रखना जरूरी है,
स्थानीय लोगों ने इस कार्यक्रम की सराहना की और इसे रोचक और शिक्षाप्रद पाया। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस तरह के आयोजनों का उद्देश्य ग्रामीणों को हाथियों के व्यवहार के बारे में जागरूक करना और उनके साथ टकराव से बचने के उपाय सुझाना है। वन मंडलाधिकारी कुमार निशांत ने कहा, “हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि ग्रामीणों को हाथियों के प्रति सही व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए। नुक्कड़ नाटक जैसे माध्यम लोगों तक आसानी से पहुंचते हैं और प्रभावी साबित हो रहे हैं।”
टोल प्लाजा के पास हाथी का उत्पात
नुक्कड़ नाटक के आयोजन के बीच ही खबर आई कि चोटिया के पास कोरबा-कटघोरा-अंबिकापुर नेशनल हाईवे पर स्थित टोल प्लाजा से लगभग 500 मीटर की दूरी पर एक दंतैल हाथी एक किसान के खेत में घुस गया। हाथी ने खेत में लगी धान की फसल को न केवल खाया, बल्कि उसे रौंदकर भारी नुकसान भी पहुंचाया। इस घटना की जानकारी मिलते ही आसपास के लोग खेत की ओर दौड़ पड़े। कुछ लोग उत्सुकता में हाथी को देखने के लिए जमा हो गए, जबकि कुछ ने गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार करते हुए हाथी को पत्थर मारकर उकसाने की कोशिश की।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हाथी ने आक्रामक रुख अपनाते हुए कुछ लोगों की ओर दौड़ने की कोशिश की, जिससे वहां अफरा-तफरी मच गई। नेशनल हाईवे पर वाहनों की लंबी कतार लग गई, और लोग हाथी की तस्वीरें और वीडियो लेने में व्यस्त हो गए। इस दौरान वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन भीड़ को तितर-बितर करना और हाथी को जंगल की ओर खदेड़ना चुनौतीपूर्ण रहा।
ग्रामीणों की लापरवाही और बढ़ता खतरा
यह घटना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि ग्रामीणों और राहगीरों की लापरवाही किस तरह मानव-हाथी संघर्ष को और गंभीर बना रही है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अधिकांश घटनाएं तब होती हैं, जब लोग हाथियों के करीब जाते हैं, उन्हें छेड़ते हैं या पत्थर मारकर भगाने की कोशिश करते हैं। एक स्थानीय किसान, रामलाल साहू, ने बताया, “हमारे खेतों में हाथी आते हैं, फसलें बर्बाद करते हैं। डर तो बहुत लगता है, लेकिन कुछ लोग बिना सोचे-समझे उनके पास चले जाते हैं। अगर हम शांत रहें और वन विभाग को सूचित करें, तो शायद नुकसान कम हो।”
हाल के महीनों में कटघोरा वन मंडल के चोटिया, बनिया, और आसपास के क्षेत्रों में 35 से 48 हाथियों का झुंड लगातार सक्रिय है। इन हाथियों ने न केवल फसलों को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि कई लोगों की जान भी ले ली है। जुलाई 2025 में चोटिया और बनिया क्षेत्र में हाथियों के हमले में तीन ग्रामीणों की मौत हो चुकी है, जिसके बाद से गांवों में दहशत का माहौल है।
वन विभाग की चुनौतियां और मुआवजा
वन विभाग का कहना है कि वे हाथियों की निगरानी के लिए टीमें तैनात कर रहे हैं, लेकिन बड़े झुंड को गांवों से दूर रखना आसान नहीं है। विभाग ने प्रभावित किसानों को मुआवजा देने की प्रक्रिया भी तेज की है। दिसंबर 2022 में ही कटघोरा वन मंडल में 1306 किसानों को 1 करोड़ 43 लाख रुपये का मुआवजा वितरित किया गया था। हाल की घटनाओं के बाद भी विभाग ने तत्काल राहत के रूप में 25,000 रुपये की सहायता और शेष राशि जल्द देने का आश्वासन दिया है।
हालांकि, ग्रामीणों का आरोप है कि मुआवजा समय पर नहीं मिलता, और हाथियों के आतंक से स्थायी निदान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। एक स्थानीय निवासी, श्यामलाल यादव, ने कहा, “हर साल फसलें बर्बाद होती हैं, लोग मर रहे हैं। वन विभाग सिर्फ मुआवजा देने की बात करता है, लेकिन हाथियों को जंगल में रखने के लिए क्या किया जा रहा है?”
स्थायी समाधान की जरूरत
कोरबा जिले में हाथियों का आतंक कोई नई समस्या नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में रायगढ़, कोरबा, सूरजपुर, और जशपुर जैसे जिलों में मानव-हाथी संघर्ष में तेजी आई है। आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में पिछले पांच वर्षों में हाथियों के हमलों में लगभग 320 लोगों की मौत हुई है। हर साल करीब 200 एकड़ की फसल को नुकसान पहुंचता है, जिसके लिए सरकार औसतन 20 लाख रुपये का मुआवजा देती है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि जंगलों की कटाई, खनन गतिविधियों, और हाथियों के प्राकृतिक आवास में कमी इस समस्या की जड़ है। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाना, जंगलों में उनके लिए भोजन और पानी की व्यवस्था करना, और ग्रामीणों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करना इस समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है।
,,निष्कर्ष,,
चोटिया में एक ही दिन में नुक्कड़ नाटक के जरिए जागरूकता और खेत में हाथी के उत्पात की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए जागरूकता के साथ-साथ ठोस कार्रवाई की जरूरत है। ग्रामीणों को अपनी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार व्यवहार अपनाना होगा, और प्रशासन को इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए दीर्घकालिक नीतियां बनानी होंगी। जब तक दोनों पक्ष मिलकर काम नहीं करते, कोरबा और आसपास के क्षेत्रों में यह तनाव बना रहेगा।

जन जन की आवाज़