HomeUncategorizedलखपति दीदी नीलम सोनी: स्वाद, संस्कृति और सशक्तिकरण की एक प्रेरक कहानी,,

लखपति दीदी नीलम सोनी: स्वाद, संस्कृति और सशक्तिकरण की एक प्रेरक कहानी,,

लखपति दीदी नीलम सोनी: स्वाद, संस्कृति और सशक्तिकरण की एक प्रेरक कहानी,,

कोरबा, 21 जुलाई 2025: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के कटघोरा में रहने वाली श्रीमती नीलम सोनी ने अपनी मेहनत, दृढ़ निश्चय और जुनून से न केवल अपनी जिंदगी को नया आयाम दिया, बल्कि सैकड़ों महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। उनकी कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की सफलता की कहानी नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव का एक प्रेरणादायक प्रतीक है।

नीलम सोनी ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के तहत मिले सहयोग और अपनी मेहनत के बल पर ‘गढ़ कलेवा’ नामक परंपरागत छत्तीसगढ़ी भोजनालय की स्थापना की, जो आज न केवल स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है, बल्कि छत्तीसगढ़ी व्यंजनों और संस्कृति को देशभर में पहचान दिलाने का माध्यम बन चुका है। उनकी यह यात्रा इस बात का जीवंत उदाहरण है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मुश्किल राह आसान हो सकती है।
नीलम सोनी की शुरुआत: चुनौतियों से भरी जिंदगी
नीलम सोनी का जीवन पहले कई चुनौतियों से भरा हुआ था। कोरबा जिले के कटघोरा में रहने वाली नीलम के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। उनके पति अकेले कमाने वाले थे, और परिवार का खर्च चलाना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा था। बच्चों की शिक्षा, घर के दैनिक खर्च और अन्य जरूरतों को पूरा करना एक बड़ा संघर्ष था। नीलम बताती हैं, “उस समय हालात ऐसे थे कि बच्चों के भविष्य की चिंता मुझे हर पल सताती थी। मैं कुछ करना चाहती थी, लेकिन रास्ता नहीं दिख रहा था।”
नीलम ने घरेलू जिम्मेदारियों में सिमटने के बजाय बदलाव का रास्ता चुना। उन्होंने अपनी बेटी श्रिया के नाम पर ‘श्रिया स्व-सहायता समूह’ की शुरुआत की और छत्तीसगढ़ शासन के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) से जुड़कर अपने सपनों को हकीकत में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया। यह वह मोड़ था, जहां से उनकी जिंदगी ने नया रास्ता पकड़ा।
बिहान योजना: आत्मनिर्भरता की उड़ान
बिहान योजना, जो राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का हिस्सा है, ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के अवसर प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। इस योजना के तहत नीलम सोनी को छह लाख रुपये का ऋण प्राप्त हुआ, जिसने उनके सपनों को पंख दिए। इस राशि का उपयोग करके नीलम ने कटघोरा में ‘गढ़ कलेवा’ नामक एक परंपरागत छत्तीसगढ़ी भोजनालय की शुरुआत की।
शुरुआत में यह आसान नहीं था। नीलम को न केवल व्यवसाय की बारीकियां सीखनी थीं, बल्कि बाजार में अपनी जगह बनाना और ग्राहकों का भरोसा जीतना भी एक चुनौती थी। लेकिन उनकी मेहनत और लगन ने जल्द ही रंग दिखाया। नीलम कहती हैं, “शुरुआत में मुझे डर था कि क्या मैं यह कर पाऊँगी। लेकिन बिहान योजना के तहत मिली ट्रेनिंग और समूह की अन्य महिलाओं का साथ मेरे लिए बहुत बड़ा सहारा बना।”
गढ़ कलेवा: स्वाद और संस्कृति का संगम
गढ़ कलेवा सिर्फ एक भोजनालय नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संजोने और बढ़ावा देने का एक अनूठा मंच है। नीलम ने इस भोजनालय में छत्तीसगढ़ी व्यंजनों जैसे चीला, फरा, ठेठरी, खुरमी, अईरसा, चौसेला, तसमई, करी लड्डू, सोहारी और मिलेट्स (मोटा अनाज) से बने पारंपरिक पकवानों को शामिल किया। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ की ग्रामीण और आदिवासी संस्कृति की झलक भी प्रस्तुत करते हैं। भोजनालय की सजावट में भी छत्तीसगढ़ की पारंपरिक कला और संस्कृति को विशेष स्थान दिया गया है, जो ग्राहकों को अपनेपन का अहसास कराती है।
नीलम ने बताया, “मैं चाहती थी कि गढ़ कलेवा में लोग न केवल खाने का स्वाद लें, बल्कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को भी महसूस करें। यहाँ की हर चीज, चाहे वह खाना हो या सजावट, छत्तीसगढ़ की पहचान को दर्शाती है।” गढ़ कलेवा ने जल्द ही स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच अपनी खास जगह बना ली। यह भोजनालय अब न केवल स्वाद के लिए जाना जाता है, बल्कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति को देशभर में पहचान दिलाने का एक जरिया बन गया है।
सामाजिक बदलाव की मिसाल
नीलम की कहानी सिर्फ व्यक्तिगत सफलता तक सीमित नहीं है। उन्होंने अपने स्व-सहायता समूह के माध्यम से लगभग 200 महिलाओं को रोजगार और आत्मनिर्भरता की राह दिखाई है। इनमें से 20 महिलाएं सीधे गढ़ कलेवा में कार्यरत हैं, जो भोजन तैयार करने, परोसने और अन्य कार्यों में योगदान देती हैं। विशेष रूप से, नीलम ने पीवीटीजी बिरहोर जनजाति की महिलाओं को भी अपने समूह से जोड़ा, जो पहले आजीविका के अवसरों से वंचित थीं। इन महिलाओं को प्रशिक्षण देकर नीलम ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान किया।
नीलम कहती हैं, “मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी यह है कि मैंने न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि मेरे साथ मेरी बहनों का पूरा परिवार भी आगे बढ़ा है। जब मैं देखती हूँ कि मेरे समूह की महिलाएं अपने बच्चों की पढ़ाई और परिवार की जरूरतों को पूरा कर पा रही हैं, तो मुझे लगता है कि मेरा संघर्ष सार्थक हुआ।”

,,आर्थिक सफलता: लखपति दीदी की उड़ान,,

नीलम सोनी की मेहनत और लगन का नतीजा यह है कि आज गढ़ कलेवा हर महीने लगभग 1.5 लाख रुपये का टर्नओवर करता है, और उनका वार्षिक टर्नओवर 12 लाख रुपये के करीब पहुँच चुका है। यह उपलब्धि न केवल उनकी आर्थिक सफलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्तर पर शुरू किए गए व्यवसाय भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। इसके अलावा, नीलम ने बांस की कलाकृतियाँ और हस्तनिर्मित सजावटी वस्तुओं का व्यवसाय भी शुरू किया, जिससे उनकी आय में और इजाफा हुआ। यह व्यवसाय छत्तीसगढ़ की लोककला को बढ़ावा देने का भी एक माध्यम बन गया।
प्रेरणा और भविष्य की योजनाएँ
नीलम सोनी की कहानी छत्तीसगढ़ की उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलना चाहती हैं। नीलम कहती हैं, “बिहान योजना और शासन का सहयोग मेरे लिए एक वरदान साबित हुआ। अगर यह सहायता न मिली होती, तो शायद मैं और मेरे जैसी सैकड़ों महिलाएं आज भी घर की चार दीवारों तक सीमित होतीं।”
नीलम का सपना अब और बड़ा है। वह चाहती हैं कि गढ़ कलेवा छत्तीसगढ़ के हर जिले में फैले और छत्तीसगढ़ी व्यंजनों व संस्कृति को देशभर में पहचान मिले। इसके साथ ही, वह अपने व्यवसाय को एक मॉडल के रूप में स्थापित करना चाहती हैं, ताकि अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाया जा सके। नीलम कहती हैं, “मैं चाहती हूँ कि मेरे जैसे और भी ‘लखपति दीदी’ इस राज्य से निकलें और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करें।”
शासन और प्रशासन का योगदान
नीलम सोनी छत्तीसगढ़ शासन, बिहान मिशन, और विशेष रूप से मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय व जिला प्रशासन कोरबा का हृदय से आभार व्यक्त करती हैं। उनके अनुसार, शासन की योजनाओं और अधिकारियों के सहयोग के बिना यह सफलता संभव नहीं थी। बिहान योजना ने न केवल आर्थिक सहायता प्रदान की, बल्कि महिलाओं को प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और आत्मविश्वास प्रदान करके उन्हें अपने सामर्थ्य पर भरोसा करना सिखाया।
जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया, “नीलम सोनी जैसे उदाहरण इस बात का प्रमाण हैं कि बिहान योजना ग्रामीण महिलाओं के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। यह योजना न केवल आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है, बल्कि सामाजिक समावेश और सांस्कृतिक संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।”
                   ,,निष्कर्ष,,
श्रीमती नीलम सोनी की कहानी एक ऐसी प्रेरक गाथा है, जो दर्शाती है कि मेहनत, लगन और सही अवसर मिलने पर कोई भी सपना असंभव नहीं है। गढ़ कलेवा के माध्यम से नीलम ने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा दिया और सैकड़ों महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। उनकी यह यात्रा न केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव का एक जीवंत उदाहरण है। बिहान योजना और गढ़ कलेवा जैसे प्रयास छत्तीसगढ़ की महिलाओं को नई दिशा और पहचान दे रहे हैं, और नीलम सोनी इस बदलाव की एक सशक्त मिसाल हैं।
नीलम की कहानी हर उस महिला को प्रेरित करती है, जो अपने सपनों को सच करने का हौसला रखती है। यह कहानी आत्मनिर्भर भारत के उस सपने को साकार करती है, जिसमें हर महिला न केवल अपने परिवार, बल्कि समाज और देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

विनोद जायसवाल
विनोद जायसवाल
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