हाथियों का आतंक: छत्तीसगढ़ कटघोरा वनमडल के जडगा,-पसान, केन्दई में विचरण, लेमरू एलीफेंट रिजर्व प्रस्ताव पर सवाल,,
कोरबा कटघोरा—– 1 सितंबर 2025: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के जडगा-पसान, केद॑ई रेंज में जंगली हाथियों का एक बड़ा दल एक बार फिर सक्रिय हो गया है, जिससे स्थानीय ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से मिली ताजा जानकारी के अनुसार, आज रात 8 बजे के आसपास 12 से 15 हाथियों का झुंड पूटा-मदनपुर के बीच बभनी पुल को पार कर चुका है। यह वही झुंड माना जा रहा है, जो हाल ही में उदयपुर क्षेत्र में उत्पात मचा रहा था। इसके अलावा, कोरबी फुलसर में एक अकेला हाथी और करमटिकरा-जडगा रोड पर 11 हाथियों का दल मड़ई-कोदवरी की ओर बढ़ता देखा गया है। इस स्थिति ने लेमरू एलीफेंट रिजर्व और एलीफेंट कॉरिडोर की आवश्यकता पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं।
हाथियों का उत्पात: ग्रामीणों में दहशत
व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य विजय ने बताया कि मदनपुर से एक गाड़ी चालक ने सूचना दी कि बभनी पुल से 25-30 मीटर की दूरी पर 12 हाथियों का झुंड देखा गया। विजय ने अपने दोस्तों के साथ वॉइस कॉल पर पुष्टि करने के बाद यह जानकारी ग्रुप में साझा की। वहीं, कोरबी फुलसर निवासी पुनीत यादव ने बताया कि एक अकेला हाथी उनके गांव में विचरण कर रहा है, जबकि 11 हाथियों का दल करमटिकरा-जडगा रोड को पार कर मड़ई-कोदवरी की ओर बढ़ रहा है।
बताया जा रहा है कि उदयपुर रेंज में विचरण कर रहे हाथी केन्दई रेंज में प्रवेश कर गए हैं वन विभाग ने पतुरियाडांड, मदनपुर, मोरगा, खिरटी, और उछलेंगा जैसे गांवों में अलर्ट जारी किया है। ग्रामीणों से सतर्क रहने और हाथियों की सटीक जानकारी ग्रुप में साझा करने की अपील की गई है। डीएफओ निशांत झा ने बताया कि कटघोरा वन मंडल पिछले कुछ समय से हाथियों का हॉटस्पॉट बना हुआ है। मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग और ग्रामीणों के बीच समन्वय बनाया जा रहा है।
लेमरू एलीफेंट रिजर्व: विवादों में कमी
छत्तीसगढ़ सरकार ने लेमरू हाथी रिजर्व के क्षेत्र को 1,995 वर्ग किलोमीटर से घटाकर 450 वर्ग किलोमीटर करने का प्रस्ताव दिया है, जिसने पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों के बीच विवाद को जन्म दिया है। वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने 450 वर्ग किलोमीटर के रिजर्व को मंजूरी दी थी, जिसे 2019 में कांग्रेस सरकार ने 1,995 वर्ग किलोमीटर तक विस्तारित करने का फैसला किया था। इस रिजर्व में जशपुर का बादलखोल अभयारण्य, बलरामपुर का तमोरपिंगला, सूरजपुर का सेमरसोत, और कोरबा का लेमरू वन क्षेत्र शामिल है।
हालांकि, 2021 में सरकार ने इस क्षेत्र को फिर से 450 वर्ग किलोमीटर तक सीमित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे खनन कंपनियों के दबाव का परिणाम माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने आरोप लगाया कि हसदेव अरण्य जैसे समृद्ध वन क्षेत्र के संरक्षण और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए किए गए वादों से सरकार पीछे हट रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि इस फैसले में ग्राम सभाओं से कोई विचार-विमर्श क्यों नहीं किया गया।
एलीफेंट कॉरिडोर: योजना अधर में
हाथियों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। लेमरू एलीफेंट रिजर्व को हाथियों के लिए एक सुरक्षित गलियारा बनाने की योजना थी, ताकि वे बिना मानव बस्तियों में प्रवेश किए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जा सकें। इस रिजर्व में चारा और पानी की व्यवस्था की जानी थी, जिससे हाथी जंगलों में ही रहें और मानव-हाथी संघর্প कम हो। लेकिन क्षेत्रफल में कमी और कोयला खनन को मंजूरी जैसे कदमों ने इस योजना की प्रगति को बाधित किया है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में 64 कोल ब्लॉकों में से 54 को रिजर्व के दायरे से बाहर रखने का फैसला खनन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए लिया गया, जिससे पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण पर सवाल उठ रहे हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान की ‘एलीफेंट कॉरिडोर्स ऑफ इंडिया 2023’ रिपोर्ट में देशभर में हाथियों के लिए सुरक्षित गलियारों की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इस दिशा में ठोस प्रगति नहीं दिख रही।
मानव-हाथी संघर्ष: बढ़ती चुनौती
छत्तीसगढ़ में हाथियों का विचरण कोई नई बात नहीं है। 1990 के दशक से झारखंड और ओडिशा से आए हाथी राज्य के उत्तरी और मध्य भागों में सक्रिय हैं। लेकिन औपचारिक नीति के अभाव में ये हाथी मानव बस्तियों में भटकने लगे, जिससे फसलों का नुकसान, संपत्ति की क्षति, और कभी-कभी जनहानि की घटनाएं बढ़ी हैं। हाल ही में कोरबा में 46 हाथियों के झुंड ने नेशनल हाईवे-130 को पार किया, जिससे यातायात बाधित हुआ और ग्रामीणों में डर का माहौल बना।
,,आगे की राह,,
हाथियों के संरक्षण और मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए विशेषज्ञ कई उपाय सुझा रहे हैं। इनमें सैटेलाइट कॉलर के माध्यम से हाथियों की गतिविधियों पर नजर रखना, सुरक्षित कॉरिडोर का निर्माण, और ग्रामीणों को जागरूक करना शामिल है। साथ ही, लेमरू एलीफेंट रिजर्व को पूर्ण रूप से लागू करने और इसके क्षेत्रफल को पर्याप्त रखने की मांग जोर पकड़ रही है।
ग्रामीणों से अपील की जा रही है कि वे हाथियों के झुंड से दूरी बनाए रखें और वन विभाग को तुरंत सूचित करें। वन विभाग ने भी आश्वासन दिया है कि वह स्थिति पर नजर रखे हुए है और ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाए जा रहे हैं।

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