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रलिया में एसईसीएल अधिग्रहित जमीन की अवैध रजिस्ट्री: उप पंजीयक को नोटिस, कलेक्टर की सख्त कार्रवाई,,

रलिया में एसईसीएल अधिग्रहित जमीन की अवैध रजिस्ट्री: उप पंजीयक को नोटिस, कलेक्टर की सख्त कार्रवाई,,

कोरबा, छत्तीसगढ़: कटघोरा विकासखंड के अर्जित ग्राम रलिया में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) द्वारा अधिग्रहित जमीन के क्रय-विक्रय पर शासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद अवैध रजिस्ट्री का मामला सामने आया है। इस गंभीर उल्लंघन पर कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत ने सख्त रुख अपनाते हुए उप पंजीयक कोरबा, श्रीमती पावरेम मिंज को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। नोटिस में 24 घंटे के भीतर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं, अन्यथा एकपक्षीय कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। यह मामला छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के उल्लंघन से जुड़ा है और इसमें हाईकोर्ट के आदेश के गलत अनुवाद का भी आरोप है।

मामले का विवरण

ग्राम रलिया, जो एसईसीएल द्वारा अधिग्रहित क्षेत्र के अंतर्गत आता है, में भूमि की खरीद-बिक्री, बटांकन, छोटे टुकड़ों में अंतरण और उपयोग में परिवर्तन पर शासन द्वारा सख्त प्रतिबंध लगाया गया है। भू-अर्जन की अधिसूचना जारी होने के बाद इस तरह की गतिविधियों पर पूर्ण रोक है। इसके बावजूद, रलिया निवासी सहसराम पिता दुलार साय ने अपनी स्वामित्व वाली जमीन को बेचने के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, बिलासपुर में याचिका (डब्ल्यूपीसी नंबर 764/2025) दायर की थी।
हाईकोर्ट ने 4 जुलाई 2025 को अपने आदेश में उप पंजीयक कोरबा को निर्देश दिया था कि यदि कोई कानूनी बाधा नहीं है, तो याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच निष्पादित बिक्री विलेख को कानून के अनुसार पंजीकृत करने पर विचार किया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से विधि-सम्मत कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। हालांकि, उप पंजीयक कोरबा ने इस आदेश का गलत अनुवाद करते हुए शासन के निर्देशों का उल्लंघन किया और अर्जित भूमि की रजिस्ट्री कर दी।

अवैध रजिस्ट्री का विवरण

उप पंजीयक कोरबा द्वारा तहसील दीपका के अर्जित ग्राम रलिया में सहसराम पिता दुलार साय की स्वामित्व वाली भूमि, जो पटवारी हल्का नंबर 51 के अंतर्गत खसरा नंबर 149/2 (0.275 हेक्टेयर), खसरा नंबर 168 (0.085 हेक्टेयर), और खसरा नंबर 192/2 (0.085 हेक्टेयर) में कुल 0.445 हेक्टेयर है, को नाबालिक विशाल सिंह (बली पालक पिता नवल कुमार मरावी) के नाम पर पंजीकृत किया गया। यह रजिस्ट्री दस्तावेज संख्या CG-2025-26-160-1-607 के तहत 11 जुलाई 2025 को की गई।
इस रजिस्ट्री को शासन के स्पष्ट निर्देशों और भू-अर्जन नियमों के खिलाफ माना जा रहा है, क्योंकि अर्जित भूमि की खरीद-बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है। उप पंजीयक का यह कृत्य छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के प्रावधानों का उल्लंघन माना गया है।

कलेक्टर की कार्रवाई

कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उप पंजीयक श्रीमती पावरेम मिंज को कारण बताओ नोटिस जारी किया। नोटिस में हाईकोर्ट के आदेश के गलत अनुवाद और शासकीय निर्देशों के उल्लंघन के आधार पर स्पष्टीकरण मांगा गया है। उप पंजीयक को 24 घंटे के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है। यदि जवाब संतोषजनक नहीं हुआ या समय पर प्रस्तुत नहीं किया गया, तो एकपक्षीय कार्रवाई की जाएगी। यह कार्रवाई निलंबन से लेकर अन्य अनुशासनात्मक कदमों तक हो सकती है।

कानूनी और प्रशासनिक पृष्ठभूमि

छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 165 के तहत, विशेष रूप से पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में, आदिवासी भू-स्वामियों की जमीन की खरीद-बिक्री के लिए जिला कलेक्टर की अनुमति अनिवार्य है। रलिया जैसे अर्जित क्षेत्रों में यह नियम और भी सख्त है, क्योंकि यह भूमि एसईसीएल जैसे सार्वजनिक उपक्रमों के लिए अधिग्रहित की गई है। इसके बावजूद, इस मामले में न केवल शासकीय निर्देशों का उल्लंघन हुआ, बल्कि हाईकोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या कर अवैध रजिस्ट्री को अंजाम दिया गया।

आदिवासी जमीनों पर अवैध कब्जे का इतिहास

रलिया और कोरबा जैसे क्षेत्रों में आदिवासी जमीनों पर अवैध कब्जे और फर्जी रजिस्ट्री के मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। कॉरपोरेट घरानों और प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा आदिवासी भूमियों पर जबरन कब्जा करने की शिकायतें लंबे समय से चली आ रही हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कई बार आदिवासी जमीनों के संरक्षण के लिए सख्त आदेश जारी किए हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन और कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से इन आदेशों का उल्लंघन होता रहा है। इस मामले में भी हाईकोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या एक गंभीर प्रशासनिक चूक को दर्शाती है।

प्रभाव और संभावित परिणाम

इस अवैध रजिस्ट्री के कई दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं:
आदिवासी हितों पर खतरा: रलिया जैसे अर्जित क्षेत्रों में आदिवासी भू-स्वामियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। यह मामला आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ा झटका है।
प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल: उप पंजीयक द्वारा हाईकोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या और शासकीय नियमों की अनदेखी से प्रशासनिक विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
कानूनी कार्रवाई: यदि उप पंजीयक का स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं हुआ, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ-साथ रजिस्ट्री को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
हाईकोर्ट की निगरानी: चूंकि यह मामला हाईकोर्ट के आदेश से जुड़ा है, कोर्ट इस मामले में स्वत: संज्ञान ले सकता है और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई के निर्देश दे सकता है।

आगे की राह

इस मामले में निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
रजिस्ट्री की जांच: कलेक्टर द्वारा गठित एक समिति अवैध रजिस्ट्री की जांच कर सकती है और इसे रद्द करने की सिफारिश कर सकती है।
उप पंजीयक के खिलाफ कार्रवाई: यदि उप पंजीयक का जवाब असंतोषजनक रहा, तो उनके खिलाफ निलंबन या अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
आदिवासी हितों की रक्षा: जिला प्रशासन को आदिवासी जमीनों के संरक्षण के लिए और सख्त कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों।
हाईकोर्ट में अपील: यदि रजिस्ट्री रद्द नहीं हुई, तो प्रभावित पक्ष हाईकोर्ट में अपील कर सकता है, जिसके आधार पर कोर्ट इस मामले में और सख्त निर्देश जारी कर सकता है।

                                ,,निष्कर्ष,,

रलिया में एसईसीएल द्वारा अधिग्रहित जमीन की अवैध रजिस्ट्री का यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि आदिवासी समुदाय के हितों पर भी गंभीर सवाल उठाता है। कलेक्टर अजीत वसंत की त्वरित कार्रवाई इस मामले में जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इस मामले का अंतिम समाधान उप पंजीयक के स्पष्टीकरण और संभावित कानूनी कार्रवाइयों पर निर्भर करेगा। यह मामला एक बार फिर यह दर्शाता है कि आदिवासी जमीनों के संरक्षण के लिए शासकीय नियमों का सख्ती से पालन और पारदर्शी प्रशासनिक प्रक्रिया कितनी आवश्यक है।

विनोद जायसवाल
विनोद जायसवाल
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