HomeUncategorizedकोरबा-कटघोरा: कलचुरि कलार राजवंश के पुनर्जागरण का आह्वान, सामाजिक एकीकरण पर जोर,,,

कोरबा-कटघोरा: कलचुरि कलार राजवंश के पुनर्जागरण का आह्वान, सामाजिक एकीकरण पर जोर,,,

कोरबा-कटघोरा: कलचुरि कलार राजवंश के पुनर्जागरण का आह्वान, सामाजिक एकीकरण पर जोर,,,

कोरबा, 18 जुलाई 2025: छत्तीसगढ़ के कोरबा-कटघोरा क्षेत्र से एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहल की खबर सामने आई है, जिसमें कलार समाज और कलचुरि राजवंश के गौरवशाली इतिहास को पुनर्जनन देने और समाज को एकजुट करने का आह्वान किया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता कौन्तेय जायसवाल और सत्या जायसवाल ने इस दिशा में सक्रिय प्रयासों की बात कही है। नीचे इस समाचार को बिंदुवार विस्तार से प्रस्तुत किया गया है:

कलचुरि कलार राजवंश का पुनर्जागरण:
कलार समाज पूरे देश में कलचुरि राजवंश के गौरवशाली इतिहास को पुनर्जनन देने और इसके नाम को स्थापित करने में जुटा है।

कलचुरि राजवंश इतिहास पुरातत्व शोध समिति सक्रिय रूप से इस दिशा में कार्य कर रही है, जिसका लक्ष्य इस वंश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को संरक्षित और प्रचारित करना है।
समाज का उद्देश्य गर्व के साथ अपने को कलचुरि राजवंश के रूप में स्थापित करना है।

कलचुरि राजवंश का ऐतिहासिक महत्व:
गांगेयदेव (1015-1041 ई.):
कलचुरि राजवंश की पहली राजधानी तुम्माण (वर्तमान कोरबा) थी।
गांगेयदेव ने दक्षिण कोशल के कलचुरि नरेश कमलराज की सहायता से उड़ीसा पर आक्रमण कर पूर्वी समुद्र तक साम्राज्य विस्तार किया।

उन्होंने त्रिकलिंगाधीपति की उपाधि धारण की और गंगा-यमुना के अंतर्वर्ती क्षेत्रों को जीतकर प्रयाग को दूसरी राजधानी बनाया। बाद में काशी को भी अपने अधीन किया।

कर्णदेव (1041-1073 ई.):
गांगेयदेव के पुत्र कर्णदेव अपने पिता से भी अधिक पराक्रमी थे।
उन्होंने पूर्वी बंगाल, पल्लव, चोल, कुंतल (उत्तर चालुक्य), गुर्जर नरेश भीम, और परमारों की धारा नगरी पर विजय प्राप्त की।

1052-53 में कर्णदेव का दूसरा राज्याभिषेक हुआ, जिसमें उन्हें “श्रीमद्विजय कटकातपरम भट्टारक महाराजा धिराज परमेश्वर श्री वामदेव पादानुध्यात परम माहेश्वर त्रिकलिंगाधीपति अश्वपति गजपति नरपति राजत्रयाधिपति श्रीमद्कर्णदेव” की उपाधि दी गई।

छत्तीसगढ़ के इतिहासकार डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल ने कर्णदेव को “भारतीय नेपोलियन” की संज्ञा दी थी।

इतिहास के प्रति उपेक्षा का आरोप:

छत्तीसगढ़ में इतिहासकारों पर कलचुरि वंश के साथ पूर्ण न्याय न करने का आरोप लगाया गया है।

सत्या जायसवाल ने कहा, “हमने बनाया, हम ही संवारेंगे,” जिससे समाज के स्वयं अपने इतिहास को सहेजने और प्रचारित करने की प्रतिबद्धता झलकती है।

सामाजिक एकीकरण की आवश्यकता:
सत्या जायसवाल ने समाज में मौजूदा कमियों, जैसे सामाजिक कर्मकांडों और बिखरे हुए उपनामों (जैसे जायसवाल, कलार, कलचुरि) की ओर ध्यान आकर्षित किया।

उन्होंने सुझाव दिया कि समाज को एकजुट करने के लिए वृहद विवाह परिचय सम्मेलन आयोजित करना आवश्यक है, ताकि सभी कलचुरि उपजातियां एक मंच पर आएं।
अग्रवाल समाज का उदाहरण देते हुए, उन्होंने प्रस्ताव दिया कि सभी कलार समाज के लोग एक ही टाइटल, जैसे जायसवाल या कलचुरि, के तहत जाने जाएं, ताकि समाज समृद्ध और शक्तिशाली हो।

सामाजिक सुझाव और अपील:
समाज में एकरूपता लाने के लिए अलग-अलग टाइटल्स को हटाकर एक सर्वमान्य नाम अपनाने की जरूरत पर बल दिया गया।

यह पहल समाज को संगठित और मजबूत करने के साथ-साथ कलचुरि वंश की ऐतिहासिक विरासत को पुनर्जनन देने का प्रयास है।

सामाजिक कार्यकर्ता कौन्तेय जायसवाल और सत्या जायसवाल ने समाज के सभी लोगों से इस मुहिम में शामिल होने की अपील की है।

कलचुरि वंश की छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक उपस्थिति:

छत्तीसगढ़ में कलचुरि वंश ने लगभग 9 सदी तक शासन किया और रतनपुर व रायपुर में इसकी दो शाखाएं स्थापित थीं।
तुम्मान (कोरबा) में महिषासुर मर्दिनी मंदिर और रतनपुर में रत्नेश्वर महादेव मंदिर जैसे स्थापत्य स्मारकों का निर्माण इस वंश के शासनकाल में हुआ।
रतनपुर की स्थापना 1050 ई. में राजा रत्नदेव ने की थी, जिसे पहले कुबेरपुर कहा जाता था।

                     ,,निष्कर्ष:,,

कलार समाज और कलचुरि राजवंश के इतिहास को पुनर्जनन देने की यह पहल छत्तीसगढ़ और पूरे देश में समाज को एकजुट करने और इसके गौरवशाली अतीत को सामने लाने का एक महत्वपूर्ण कदम है। सामाजिक कार्यकर्ताओं की यह अपील कि सभी कलचुरि उपजातियां एक टाइटल (जायसवाल या कलचुरि) के तहत एकजुट हों, समाज में एकता और समृद्धि लाने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। यह मुहिम न केवल सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देगी, बल्कि कलचुरि वंश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को भी नई पीढ़ी तक पहुंचाएगी।

विनोद जायसवाल
विनोद जायसवाल
जन जन की आवाज़

Must Read